गुलाब नगर

 


मन तो होता नहीं
कुछ लिखने को
पर क्या करूं
मौसम ऐसा हो रखा है
बारिश की बूंदे
जब शरीर पर गिरती है
यादों के बुलबुले फूटने लगते हैं
वर्धा की शाम याद करूं
या कोलकाता की चौराहे
यादें दूर तलक ले जाती है
कमरे की चार दिवारी सज जाती है
यादें हैं यादों का क्या
कभी हंसाती है
कभी रुलाती है
कभी बारिश की बूंदों के साथ
खो जाती है।।
जब मन भर आता है
तो लिखने बैठता हूं
वरना यादें उलझाई रहती है
और मैं यादों में उलझा रहता हूं
।।अजय।।

ajaysingh

cool,calm,good listner,a thinker,a analyst,predictor, orator.

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