मैं और ट्यूबलाइट

बैठा तन्हाई में सोचता हूं
कभी चारपाई, कभी तकिया
कभी बिस्तर पर रखे
बैग को देखता हूं ।।
देखता कुछ हूं
सोचता कुछ हूं
करता कुछ हूं
होता कुछ है ।।
देखता सोचता करता होता
सब एक होते तो क्या होता
सब मेरे इशारे पर नाचते तो
क्या न होता ।।
पर ऐसा होता कहां है
आधे-अधूरे से होते हैं आप
कुछ किताबों में, कुछ ख्यालों में
कुछ दोस्तों के करीब
कुछ खुद के साथ ।।
बंटे हुए हैं हम
टुकड़ों-टुकड़ों में
अधूरे से हम, अधूरे से आप
और अधूरी है यह रात ।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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