नगरी सभ्यता में पला बढ़ा
विशुद्ध जंगली हूं
जो मन करता है खाता हूं
जहां जी में आता है
बैठ जाता हूं।।
जंगल का शाश्वत नियम है
मरने का डर ही
जीने का आधार है
जीने के लिए संघर्ष
मौत को मारना पड़ता है।।
शहरी सभ्यता के लोगों को
जंगल से सबक लेना होगा
चेहरा ढकने के बजाए
खुद को मजबूत करना होगा।।
बुलंद इरादों के साथ
चुनौतियों को स्वीकार करना होगा
साथ ही डर और मौत के
व्यापार को समझना होगा।।
चुनौतियां और कठिनाइयां
आती हैं और चली जाती है
पीछे किंबदंतिया और
किस्से-कहानियां छोड़ जाती है।।
डर को डराना
मौत को मारना
परिस्थितियों को पटकना
चुनौतियों को चुन-चुन
सबक सिखाना होगा।।
तभी तो सर उठा कर
गर्व से हम कर सकते हैं
उठ खड़ा हूं मैं
नहीं मारा हूं मैं।।
दृश्य-अदृश्य तमाम
शक्तियों को ललकारता हूं मैं
इंद्रप्रस्थ के युद्धक्षेत्र में
दहाड़ता हूं मैं।।
@अजय कुमार सिंह