पसीने में लतपथ
रात में बिस्तर पर पड़ा हुआ
गर्मी का आलम जैसे
रह-रह कर ज्वाला धधक रहा ।।
गांधी, नेहरू, भगत, सुभाष पर
उनसे शाम में की गई तक़रीर
दिमाग में कुचालें भर रहे थे
इतने महापुरुष एक साथ
मेरे अंदर लड़ रहे थे।।
तभी जोर की बिजली कड़की
लगा मुझे अंदर की लड़ाई
बहार आ धमकी
जोर की बारिश हुई ।।
मिट्टी की सौंधी गंध
हवा की ठंडक
वातावरण की नामी
सोता हुआ महसूस हुआ था।।
सुबह आलस में घिरा
सोच रहा था
साला ज्ञान की आडंबर में
भाव पीछे छूट जाता है
बातीयाना चाहो कुछ
मुद्दा कुछ और छा जाता है।।
तभी खिड़की से बाहर नजर गई
देखा दूर तक
घनघोर घटा है छाई हुई
लगता है कुदरत है आज कुछ
पगलाई हुई।।
फ़ोन पर घंटी बजी
तत्काल टिकट की याद आई
उसके बाद गिरते-पड़ते
स्टेशन की और मैंने दौड़ लगाई।।
@ अजय कुमार सिंह