सोचता हूं बूंदों को पकड़कर
बादल तक पहुँच जाऊं
वहीं बना लू आशिया अपना ।।
बहुत भीड़-भाड़ है गुरु
आपके दिल्ली में
मुश्किल है खोजना पता अपना।।
आप ठहरे हिमालयवासी
घोर साधु कपट संयासी
नौकरी कहाँ करनी पड़ती है।।
हम ठहरे पृथ्वीवासी
मजबूरी है महादेव नौकरी की
जहमत उठानी पड़ती है।।
छोटे-छोटे सपनों के
ऊँची-ऊँची एमआरपी
हमें भरने होते हैं।।
आपका क्या योग में धुत
बड़े-बड़े आसामी
आगे-पीछे करते है।।
अच्छा है कभी यहां आकर
मेट्रो का भी मजा लिया कीजिए
समय निकाल इधर का भी रुख कीजिए।।
@अजय कुमार सिंह
बादल तक पहुँच जाऊं
वहीं बना लू आशिया अपना ।।
बहुत भीड़-भाड़ है गुरु
आपके दिल्ली में
मुश्किल है खोजना पता अपना।।
आप ठहरे हिमालयवासी
घोर साधु कपट संयासी
नौकरी कहाँ करनी पड़ती है।।
हम ठहरे पृथ्वीवासी
मजबूरी है महादेव नौकरी की
जहमत उठानी पड़ती है।।
छोटे-छोटे सपनों के
ऊँची-ऊँची एमआरपी
हमें भरने होते हैं।।
आपका क्या योग में धुत
बड़े-बड़े आसामी
आगे-पीछे करते है।।
अच्छा है कभी यहां आकर
मेट्रो का भी मजा लिया कीजिए
समय निकाल इधर का भी रुख कीजिए।।
@अजय कुमार सिंह