ख़लिश


जब बहुत थक जाता हूं
जब एकटक पंखे को देखता हूं
बिना पलकें झपकाए
जब लगता है कोई मुझसे
बात न करें।।

तो तुम्हारी याद आती है
तुम बहुत याद आती हो
जब रहा नहीं जाता है तो तुमको
हाय कैसी हो लिखता हूं और
हमेशा की तरह तुम
कोई जवाब नहीं देती हो।।

शायद तुम्हारी खामोशी ही
मेरे अंदर की आग है
जो मुझे लड़ने के लिए ऊर्जा देता है
हमेशा बेहतर करने की प्रेरणा देता है
अंदर ही अंदर मेरे ताप को बढ़ाता है
मुझ निस्तेज को तेज प्रदान करता है।।

तुम्हारी खामोशी का मुझे
आदत सा हो गया है
अच्छा लगता है अपने
लिखे गए ही बातों को बार-बार पढ़ाना
मन ही मन खुद पर हँसना।।

चलो अच्छा हैं
आज के लिए इतना ही काफी है
तुम्हारी मौन हज़ार शब्दों से ज्यादा
ख़लिश पैदा करता है
जिसे मैं खुद परिभाषित करता हूं।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

cool,calm,good listner,a thinker,a analyst,predictor, orator.

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