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हां और न
के मझधार
में खड़ा करता
हैं।।
कभी लगता है
इसमें मैं शामिल हूं
कभी लगता है
इससे मैं जुदा हूं।।
अजीब कशमकश
मची है
जैसे ही कुछ
सोचता हूं
तुम कुछ से कुछ
हो जाती हो।।
जब सोचना बंद
करता हूं
वापस तुम
अवतरित हो जाती
हो।।
कहां रहती हो
कहां जाती हो
मेरे सवाल
अनुत्तरित
रह जाती है
तुम चली
जाती हो।।
@अजय कुमार सिंह