रात और जंगल के बीच का सफर
अजीब सी सिरहन है
सामने जंगल की विशालता
भय का आवरण है।।
अजीब सी सिरहन है
सामने जंगल की विशालता
भय का आवरण है।।
ट्रैन से छिटकती रोशनी
घुप अंधेरे को बीधती है
पेडों की शृंखला
धरती की ताप हरती है।।
घुप अंधेरे को बीधती है
पेडों की शृंखला
धरती की ताप हरती है।।
पता नहीं कौन है यहां
जानवर और पंछियों
के अलावा कोई आदमी
मिलेगा क्या यहाँ?
जानवर और पंछियों
के अलावा कोई आदमी
मिलेगा क्या यहाँ?
अमरकंटक के राज़दार
त्रि-नेत्र के सहचर
योगिराज के विशालता के प्रतीक
हैं यह जंगल।।
त्रि-नेत्र के सहचर
योगिराज के विशालता के प्रतीक
हैं यह जंगल।।
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रहस्य