गर्मी

जेठ की गर्मी में
दूर तलक है सन्नाटा
छाया हुआ।।
तप्ती दोपहर में
लगता सृष्टि
बेजान पड़ा।।
पेड़ सूखे
पत्ते सूखे
हैं नदी सूखा पड़ा।।
मनुष्य और
जानवर दोनों बेजान
जहाँ का तहां पड़ा।।
गर्म हवाएं हौसले को तोड़ती है
धूलों का ग़ुबार
आगे बढ़ने से रोकती है।।
जल रही है धरती
गर्म है आसमां
मानो ब्रह्मांड में आग लगा पड़ा।।
रुक जा ओ पथिक
वातावरण चेताती है
प्रकृति का नियम कड़ा।।
हरयाली भी मरुस्थल बना जाता है
प्रकृति के विरुद्ध जो जाता
वह उसी का हो जाता है।।
-अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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