भूखा हूं सदियों से
प्यासा हूं वर्षों से
अन्न का एक दाना मयस्सर नहीं
जल का एक कतरा होठों से सटा नहीं।।
वह कौन सी ऊर्जा है
जिसने लड़ना मुझे सिखाया
पता नहीं कैसे जिंदा हूं
शायद मरना मुझे गवारा नहीं।।
जो निश्चय किया
वह जरूर किया
परिस्थितियों के आगे घुटने टेकना
कभी मैंने कबूला नहीं।।
साम दाम दंड भेद के
प्रलोभन और डर को
कभी मैंने स्वीकारा नहीं।।
सड़कों पर आवारा की तरह घुमा
गुमनामी की जीवन जी
बारिशों में भींगा
तपती दोपहर में जला
फिर भी कभी टूटा नहीं।।
कुछ तो बात है
कुछ तो वजह है
यूं ही नहीं बनता
बादशाह कोई।।
@अजय कुमार सिंह