तुम में और मुझ में
बस इतना फर्क है
मैं आम होता गया
तुम खास होते गए।।
समय ने बहुत सितम किया
तुम्हें सत्ता दिया
मुझे श्रम दिया
तुम्हें मंच दिया
मुझे मौन दिया।।
मैं जमीन से जुड़ता गया
तुम जमीन जोड़ते गए
मैं आम बना
तुम पूंजीपति बने।।
सोचो पैदा होने से पहले
तुम कहाँ थे
मारने के बाद
मैं कहाँ रहूंगा
यह जो अदृश्य और अव्यक्त है
सब इसी का किया-धरा है
न कोई जन्म लेता है
न कोई मरता है
मैं नहीं कहता
गीता में लिखा है।।
मैं तुम और यह फासला
इसी अव्यक्त की कृति है
तुम्हें प्रेरणा बनाया
मुझे प्राण बनाया
कभी खत्म न होने वाली
यह कहानी बनाई।।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
@अजय कुमार सिंह
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