दूर सड़क पर



खड़ा सड़क पर देखता हूं

खुद को बार बार

खुद से पुछता हूं कई बार।।



कहां जाती है ये सड़कें

गाड़ियों पर बैठे लोग

क्‍या सोचते है।।



जाम हो जब सड़क

तो क्‍या करते है।।



क्‍या मेरी तरह ही

खुद की तन्‍हाई में खो जाते हैं।।



या चिल्‍ला–चिल्‍ला कर

जोर-जोर से हंसते है।।



शिशे से झाकते चेहरे

अच्‍छे लगते है।।



चमचमाती गांड़ियो का आवरण

जो ओढ़ बैठे है

खड़ा सड़क पर मैं

देखता उनको कई बार।।



दिल की तन्‍हाई में

झाकता हूं

अपनी यायावरी को

ताकता हूं।।



आवारा हो

खड़कों पर फिरता हूं

खोजते फिरता हूं

खुद को बारंब-बार।।

-अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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