हद है
कुछ बदलता नहीं
समय बीतता जाता है
समय बदलता नहीं।।
ए मेरे खुदा
कुछ तो बता
ऐसा वक्त मेरे नसीब में
कि वक्त बदलता नहीं।।
कितने पानी बहे
झेलम और चिनाब में
पर ठहरी हुई मुकद्दर
बदलती नहीं।।
कोशिशें हजार की
पर क्या है कि
रूकी हुई जिंदगी
रफ्तार पकड़ती नहीं।।
कितने किस्से सुने
कितने किस्से सुनाएं
किस्सा अपना ऐसा
कि कोई मोड़ आता नहीं।।
कविता भी लिख डाली
जो असाध्य था कर डाला
पर जीवन है कि
ठस से मस होता नहीं।।
जो प्रिय थे उन्हें भी नकारा
खुद को तन्हाई में डाला
जीवन का एकांकीपन
खत्म होता नहीं।।
हर नुस्का आजमाया
जो आदर्श सब फरमाया
घाव ऐसा
कि भरता नहीं।।
मंदिर-मस्जिद में
मन्नते मांगी
पर ऐसा क्या कि
कोई दुआ कबूल होता नहीं।।
चौक-चौराहे पर
कितनी चाय पी
पता नहीं क्यों
जोश और जुनून आता नहीं।।
क्या पाया और क्या खोया
अजब गणित जीवन का
समझने बैठो तो
समझ मेंआता नहीं।।
किसे सुनाये
कौन सुनेगा
बेकरार मन को
कहीं सुकू आता नहीं।।
एक-दो दिन की
कौन पुछता है
सालों से यही रोना है
अब बर्दाशत होता नहीं।।
कभी चुप तो कभी खुब बोला
क्या करें
मौन की भाषा
कोई समझता नहीं।।
कैसी-कैसी अनुभूतियां हुई
सबकी अपनी कहानी
मेरी कोई
सुनता नहीं।।
मन और शरीर
चांडाल बड़ा
जितना साधो
सधता नहीं।।
सालों ध्यान में रहा
महिनों व्यायाम में गुजारे
कौन सा रोग मन को
जो मिटता नहीं।।
भविष्य में क्या
क्या पता
वर्तमान ऐसा की
भुत पीछा छोड़ता नहीं।।
हद है
कुछ बदलता नहीं
समय बीतता जाता हैं
समय बदलता नहीं।। -अजय