है इंसा कहां यहां
दिखते है सिर्फ
पेड़ दरख़्त और
फैला हरयाली
पानी का किनारा
तैरती मछलियां
दूर तक फ़िज़ाये
सूखे पत्ते जमीन पर
टूटी टहनियां इधर-उधर
हरे-हरे घास
बादल घिरे हुए
कौओ का क्रन्दन
कोयल की कू-कू
गिलहरियों का फुदकना
आम के पेड़
मन बाबरा
तन बईमान
दम मार
कहीं नहीं ऐसा समा
@अजय कुमार सिंह