मौन की गर्जना
शांति की अट्टहास
चारदीवारी में कैद रूह
जंगल में चीत्कार समान है।।
शब्द कोने में पड़ा है
भाव आईना देख रहा है
समय घड़ी से बंधा है
मन उलट-पुलट रहा है।।
कोई न जाने अगले पल
क्या होने वाला है
बीता पल मधुर तान
छेड़ रहा है।।
रह-रह कर
कुछ याद कर
हंसी आ रही है
शायद वीरानियों में
चिराग जल पड़ा है।।
@अजय कुमार सिंह