न जन्मा हूं
न मरूंगा
मैं तो ऊर्जा मात्र हूं
समय के साथ
रूप बदलता रहता हूं।।
कभी मैं बाप होता हूं
कभी पति होता हूं
कभी शिक्षक होता हूं
कभी राही होता हूं
कभी कुछ होता हूं
तो कभी कुछ होता हूं।।
जितने सदाचारी हैं
जितने दुराचारी हैं
वह मेरे ही अंदर बसते हैं
सदाचार की कोशिश करता हूं
दुराचार से बचता हूं।।
मन के प्रयोगशाला में
दोनों ही स्थितियों को लेकर
खूब प्रयोग करता हूं
इस आधार पर ही
निर्णय का चयन करता हूं।।
न पाप से बंधा हूं
न पुण्य से प्रभावित हूं
समय और परिस्थितियों के आधार पर
जो ठीक लगता है
वही करता हूं।।
यह हंसी, खुशी, उन्माद
सब मेरे ही इंद्रियों का विस्तार है
मेरे ही इच्छाओं का आकार है
मुझसे अलग इनकी
कोई सत्ता नहीं ।।
यही कारण है की
न मैं हंसता हूं
न ही रोता हूं
न किसी को हंसता देख
या रोता देख
व्यर्थ विलाप करता हूं
दोनों ही स्थितियों में
तटस्थता को स्वीकार करता हूं।।
मैं अजय हूं
हर किसी की तरह
मैं भी सपने देखता हूं
अपनी चाहत को देख
मैं भी खुश होता हूं
शायद इसलिए ही जिंदा हूं
जन्मदिन मनाता हूं
@अजय कुमार सिंह