व्यक्तियों से ही संस्था
व्यक्ति आधारित नियम
एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक
बदल जाते हैं नियम।।
हाय रे व्यवस्था
व्यक्ति नामक दिमक ही
तुमको चाट रहा है
काम कम करता है
नियम ज्यादा समझा रहा है।।
ऐसे में व्यक्ति बेचारा क्या करें
लाचार परेशान बस व्यक्ति
अत्याचार सहे जा रहे हैं
देखा जाए तो
व्यक्ति ही व्यक्ति का मारा हैं।।
व्यक्ति के बीच से ही निकला व्यक्ति
व्यक्तियों का बन बैठा राजा है
व्यक्ति के पीछे व्यक्ति ही पड़ा है
व्यक्ति के आगे व्यक्ति ही खड़ा है।।
कुल मिलाकर अगर
सार की बात करें तो
व्यक्ति से व्यक्तित्व बड़ा है।।
@अजय कुमार सिंह