मनुष्य ही हूँ


तुम मारता कम
घसीटता ज्यादा है
दर्द ज्यादा देता है
मरहम कम लगाता है।।
कैसी है तेरी माया
कैसा है तू
बताता कम
भटकाता ज्यादा है।।
क्यों तेरे दर पर आऊ
चल बता मुझको
माना कि तेरे जलवे हैं
तो क्या मेरी शख्सियत कम हैं।।
माना कि तू खुदा है
तुझसे ही सारी रचना है
सर्वत्र तेरी जय-जय कार है
तो क्या मैं निरुद्देश्य हूं।।
मनुष्य हूं भगवान नहीं
दर्द मुझे भी होता है
दुख मुझे भी होता है
भावनाएं मेरी भी आहत होती है।।
अफसोस तेरी प्राथमिकताओं में
मेरी दुख, दर्द और भावनाएं शामिल नहीं
वरना तुम मारते कम
घसीटते ज्यादा नहीं।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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