चरित्र


जो घिरा हुआ है रण में
वह क्या दूसरों को घेरेगा
जो योद्धा छोड़ चुका है युद्ध
वह रणभूमि में क्यों ललकारेगा।।
चाल चरित्र और चित्रण
सब भाषाओं का खेल है
जब देवता नहीं अकाट्य
भला मनुष्य कैसे बच पायेगा।।
सीता कटघरे में खड़ा
राम पर कौन उंगली उठाएगा
रावण भरे समाज में
शिव ही विष पी पायेगा।।
वितृष्णा है
कोई नहीं बचा इससे
वाद-विवाद और संवाद
से आगे जा कर चरित्र
शायद ही कभी ऊपर उठ पाएगा।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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