मुझको कहां ढूंढ़ता है
कभी नए वर्ष के उल्लास में
कभी आनंद की अभिवयक्ति में
कभी देवस्थलों में।।
मैं तो सब जगह
तुम्हारे साथ हूं
आह में, कराह में
अकेलेपन में।।
मेरी कल्पना
मेरा वजूद
तुम्हारे भौतिकता
से ही संभव है।।
फिर मुझको खुद से
अलग कर के क्यों सोचता है
तेरे भटकाव में भी मैं था
तेरे भविष्य में भी मैं रहूंगा।।
अखंड सो
बच्चों सा हंस
निश्चिन्त रह
निर्वाद हो बढ़।।
मैं था
मैं हूं
मैं रहूंगा।।
@अजय कुमार सिंह