क्या कहूं और क्या सुनू
सब माया लगता है
इधर से देखता हूं तो
कुछ और लगता है
उधर से देखता हूं तो
कुछ और लगता है।।
सब माया लगता है
इधर से देखता हूं तो
कुछ और लगता है
उधर से देखता हूं तो
कुछ और लगता है।।
कल तक जो अपना था
आज पराया लगता है
आज तक जिसे माना हकीकत
अब फसाना लगता है
समय का यही तकाजा है
चक्र बदलते रहता है ।।
आज पराया लगता है
आज तक जिसे माना हकीकत
अब फसाना लगता है
समय का यही तकाजा है
चक्र बदलते रहता है ।।
जो आज दिखता अडिग है
कल वह न रहेगा
कितने सत्ता-सामंत बह गए
गंगा के धार में
न क्रोध टीका न घमंड रहा
सब जल गए श्मशान में।।
कल वह न रहेगा
कितने सत्ता-सामंत बह गए
गंगा के धार में
न क्रोध टीका न घमंड रहा
सब जल गए श्मशान में।।
हे मनुष्य क्यों व्यर्थ प्रलाप करता है
नित नए स्वांग धरता है
तुझसे पहले भी धरा थी
तेरे बाद भी यह धरा रहेगी
बस एक जवाब दें
गैरों के लिए क्या छोड़ जाएगा।।
@अजय कुमार सिंह
नित नए स्वांग धरता है
तुझसे पहले भी धरा थी
तेरे बाद भी यह धरा रहेगी
बस एक जवाब दें
गैरों के लिए क्या छोड़ जाएगा।।
@अजय कुमार सिंह