बस भी कर


यह कैसा सत्य है
जो बदलता नहीं
कहां है वक़्त ठहरा
जो पिघलता नहीं।।
जो लकीरें खींची है
रिश्तों के दरम्यान
समय बदला पर
यह बदलता नहीं।।
अजीब किस्सों का
ताना-बाना है इर्द-गिर्द
ऐसा उलझा है कि
सिरा मिलता नहीं।।
जिंदगी की डोर
मौत के हाथों है
अब बस भी कर
दर्द सहा जाता नहीं।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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