मुसाफ़िर मैं भी हूं
मुसाफ़िर तुम भी हो
तुम किलोमीटर में रात काटते हो
मैं करवटों में रात काटता हूं।।
मुसाफ़िर तुम भी हो
तुम किलोमीटर में रात काटते हो
मैं करवटों में रात काटता हूं।।
रोड के राजा तुम
रात का शहंशाह मैं
तुम्हें देख दूसरे किनारे पकड़ते है
रात के निशाचर देख मुझे आहें भरते है।।
रात का शहंशाह मैं
तुम्हें देख दूसरे किनारे पकड़ते है
रात के निशाचर देख मुझे आहें भरते है।।
न रुकना तुम्हारी फ़ितरत
न झुकना हमारी सीरत
नज़रे तुम से सब चुराते है
मुझे देख नज़रे झुकाते है।।
न झुकना हमारी सीरत
नज़रे तुम से सब चुराते है
मुझे देख नज़रे झुकाते है।।
धूल और धुआं से परे तुम
सदा आगे बढ़ते हो
दर्द और दवा से अंजान
मैं भी संघर्ष करता हूं।।
सदा आगे बढ़ते हो
दर्द और दवा से अंजान
मैं भी संघर्ष करता हूं।।
-अजय कुमार सिंह
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सफर