मुसाफ़िर

रात का मुसाफिर हूं
दूर तलक जाऊंगा
मत छेड़ ए वक्त मुझे 
वरना रौद्र रूप दिखलाऊंगा।।
भटका राही ही सही
मुकाम खोजता फिरता हूं
जज्बातों के नाव पर सवार
कारवां खोजता फिरता हूं।।
एक जख्म भरा नहीं
कि दूसरा निकल आता है
दरिया का हर एक कतरा
मुझको डुबोना चाहता है।।
मौत का गिरेबान पकड़
जिंदगी का पता पूछता हूं
हर चौखट पर खड़ा
अपने को खोजता हूं ।।
-अजय कुमार सिं

ajaysingh

cool,calm,good listner,a thinker,a analyst,predictor, orator.

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने