अंतः संवाद


जो खींच दी है 
लकीर हमारे दिल में 
उसे कौन रंग भर पाएगा ।।

शब्दों में अगर कहूं 
तो मेरी तन्हाई को
कौन महकायेगा।।

कहां था पड़ा मैं
क्या कभी मैं
जान पाऊंगा।।

आज सोचता बैठा यहां
क्या तुझसे मिल
भी पाऊंगा।।

खामोश है लब मेरे
पर भाव नहीं
मरे अभी ।।

चींखती है
तन्हाई मेरी
कराहते हैं रुह मेरे ।।

नैन में जल-धार भरे पड़े
प्राण यूं ही
सूखा पड़ा।।

क्या यही रहेगा
वजूद मेरा
या बदलेगी सीरत मेरी ।।

खुद से सवाल पूछता हूं?
क्या कभी मैं भी
खड़ा हो पाऊंगा ।।

वक्त ने बहुत तोड़ा मुझे
ज़ख़्म दिए बहुत गहरे
मरहम कौन लगाएगा।।

पूछता हूं खुद से मैं
आने वाला कल
क्या कुछ लेकर आएगा ।।

-अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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