कहाँ बैठी हो बनकर
आओ पास मेरे एक बार
तेरी झील सी आँखों में
डुबकी लगा लूं ज़रा
तेरी हँसी में अपनी
ग़म मिला लूं ज़रा
तेरी लबों की कंपन से
धड़कन अपनी बढ़ालु ज़रा
तेरी गर्म सासों से
खुद को जगालू ज़रा
पता नहीं कल का
डूब कर तुझ में नहालु ज़रा
-अजय कुमार सिंह