आम आदमी



दिन भर भागता-दौड़ता हूं
आधी रात को सोता हूं
सूरज से पहले उठता हूं
सूरज के डूबने के बाद 
घर पहुंचता हूं।।
कई बार भीड़ में शामिल होता हूं
कई बार अकेले भी सफर करता हूं
ऐसा करने वाला मैं अकेला नहीं हूं
हज़ारों लोग इसमें शामिल हैं।।
थक कर बिस्तर पर ऐसे पड़ता हूं
जैसे कटा पेड़ ज़मीन पर आ गिरती है
सुबह फिर से मोर्चा बंदी करता हूं
थकने के लिए घर से निकल पड़ता हूं।।
मैं और कोई नहीं आम आदमी हूं
खास बनने की चाहत होती है
पर जब आँख खुलती है तो
खुद को आम के बीच ही पता हूं।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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