कविता


एक तुम हो जो मुझे
मेरे बीते हुए समय के
बोझ से काटते हो ।।
खुद से अलग करते हो
चेतन से अवचेतन की
दुनिया में ले जाते हो।।
चिंताओं से मुक्ती
स्थिरता का बोध
मुझको कराते हो।।
तुम कविता हो
प्रकट हो निवृत्ति
का अहसास कराते हो।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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