कुछ भी


सोचा आज कुछ
बदमासी करते है
सूरज से ऊर्जा लेते है
चांद से शीतलता
पृथ्वी से सुगंध और
हरयाली से ताजगी
इसके बाद देखते है
क्या करते है
पता है क्या हुआ
मेट्रो से मैंने रेस लगाई
हवाओं को भी ललकारा
बादलों को काम समझाया
समुद्र की गहराई नापा
पर्वत की उँचाई पर
थोड़ी कैंची चलाई
इतने मैं मेट्रो के
बिगबॉस ने
दहाड़ लगाई
मुनरीका आई रे भाई
चलिए टाटा बाई-बाई।।
@ अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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