खून खौलने लगेअंग-अंग कराहने लगेरोम-रोम दहाड़ने लगे
सांस फूलने लगे
आंख उबलने लगे
भुजाये फड़कने लगे
सीना दहकने लगे
हड्डियां चटखने लगे
मेरूदंड अट्हास करे
भृकुटी तन जाए तुम्हारी
चांडाल चौकड़ी करे
आत्मा शरीर छोड़ने लगे
इन सब के बीच
स्थिर हो चित
तो समझो योग है।।
- अजय कुमार सिंह