ध्यान

 
 कुछ सोचने के बाद
 कुछ बोलने से पहले 
 अचानक ठिठक जाता हूं
 भावार्थ निकालने की कोशिश
 परिणाम जानने की इच्छा होती है।।
 
देखते ही देखते
इस तरह मौन हावी हो जाती है 
कुछ बोलने से ही पहले
शब्द घुट जाते हैं।।

खामोशी के भी अपने निहितार्थ हैं
शब्द बेचैन होता है 
अभिव्यक्त होने के लिए
जबकि मौन संचार करता है।।

 इच्छाएं अनंत हैं 
 विस्तार पाना चाहती है 
 कभी शब्द बनना चाहती है
 कभी भाव बनना चाहती है।।

 जड़ शरीर को छोड़
 अखंड ऊर्जा से मिलना चाहती है
 कभी हवा बनती है
 कभी पानी बनती है।।

मृत्यु से अमरत्व का 
राज पूछती है
जिंदगी को मौत का भय दिखाती है
जब कुछ नहीं समझ में आता
तो मौन हो ध्यान मग्न हो जाती है।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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