लाश की महत्वाकांक्षा


कौन कहता है कि 

लाश की महत्वाकांक्षा 

नहीं होती।।


होती है महत्वाकांक्षा 

लाश की भी 

लेकिन पूछा नहीं कभी 

किसी ने लाश से।।


पूछा होता तो वह बताता 

मैंने पूछा एक लाश से 

क्या है तुम्हारी महत्वाकांक्षा।। 


वह हंस पड़ा 

बोला कोई और तो नहीं यहाँ 

नहीं कोई नहीं यहाँ मेरे सिवा।। 


फिर लाश ने बताना शुरू किया 

महत्वाकांक्षा मेरी है नई-नई 

जो जीवित नहीं किया 

वह अब करना चाहता हूँ।। 


देश का नेतृत्व 

अपने हाथों में चाहता हूँ 

लाश की फ़ौज 

बनाना चाहता हूँ।।


नाम 

धर्म  

लिंग 

जाति  

सबके ऊपर 

आकार लेना चाहता हूँ।।


जीते जी तो 

समय ने कभी जीने नहीं दिया 

लाश बनकर 

समय पर राज 

करना चाहता हूँ।। 


महत्वकांक्षा ख़त्म 

नहीं हुई मेरी 

यह तो महज़ 

एक शुरुआत है।।

 

लाश हूँ तो क्या हुआ 

समय से आगे 

ट्रेन के पीछे 

भागना चाहता हूँ।। 


सूरज से तेज़ 

चमकना चाहता हूँ 

हवा से बात 

करना चाहता हूँ।। 


पूरी उम्र  

इच्छाओं का दमन 

किया है मैंने 

अब तो लाश हूँ 

समाज का डर 

कोई नियम से बँधा हूँ 

अब इच्छाओं  को 

जीना चाहता हूँ।।


मदिरा का 

सेवन किया 

मांस का 

भक्षण किया 

अपने एक- एक सोच पर 

चौकीदार बन पहरा दिया 

सात्विकता के सारे मापदंड 

को पार किया।। 


अब तो मर चुका 

लाश हूँ मैं 

अब अपने किये कि 

परिणाम चाहता हूँ।।


जो बताया गया था 

समाज द्वारा 

जो लिखा-पढ़ा 

घर ग्रंथों में 

किया वो सब मैंने 

अब सबका हिसाब चाहता हूँ।।


स्वर्ग की कहानियाँ 

नर्क के क़िस्से 

जीते जी 

बहुत सुन रखा था 

अब उनका दीदार चाहता हूँ।। 


पत्थरों के आगे 

बहुत झुका 

बहुत हाथ जोड़े

लाश हूँ में 

भावनाएँ मर चुकी मेरी 

अब अपने आराध्य से 

सीधा संवाद चाहता हूँ।।


जीवन भर भटकता रहा 

अनजान तलाश में 

कभी मिला 

कभी भटकता रहा

अब सब ठीक है 

भटकाव में स्थायित्व चाहता हूँ।। 


लाश हूँ मैं 

साँसों से वास्ता 

शरीर का मोह 

अपने लिए 

जीवन और मृत्यु से परे  

मोक्ष चाहता हूँ।।

 @अजय 

ajaysingh

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