[caption id="attachment_47" align="alignnone" width="768"] WE ARE IMMERSED IN SEA OF HUMANITY[/caption]
शब्द-दृश्य-छवि और भावनाओं का ताना-बाना है सोशल मीडिया। भावनाओं के लहरों पर हिचकोले खाने का नाम है सोशल मीडिया। रियल दुनिया का वर्चुअल दुनिया में विलय होने का आधार है सोशल मीडिया। कुछ पूरा होने और कुछ अधुरा होने का अहसास करता है सोशल मीडिया। कईयों के लिए पूरा दुनिया है सोशल मीडिया। कुछ के लिए क्रीड़ास्थल तो कुछ के लिए रणक्षेत्र है सोशल मीडिया। कुछ के लिए मुस्कुराहट तो कुछ के लिए डिप्रेशन है सोशल मीडिया।
सबसे बड़ा सवाल क्रांति या भ्रांति है सोशल मीडिया?
अभी तक लोगों ने इसका प्रयोग हंसने-हंसाने और एक-दूसरे को प्रभावित करने के लिए ही किया था। एक तरह से कह लें तो सोशलाईजेशन तक ही इसके दायरें सीमित थे। क्रांति भी तकनीकि सीमाओं तक ही अपनी विस्तार पाई थी। अचानक एक दिन पता चला कि विश्व के कठोरतम शासकों के इलाके अरब में इसने वह बदलाव किया जो इसके इतिहास को ही बदल कर रख दिया। 25 जनवरी 2011 को मिस्र के तहरीर चौराहे पर इकठ्ठा हजारों के भीड़ ने आगे चल कर 30 साल से सत्ता पर काबिज हुस्नी मुबारक को पदच्युत कर दिया। लगभग एक साल बाद ट्यूनीशिया में भी वही हाल हुआ। इसके बाद बदलाव की बयार पूरे मध्य पूर्व और उत्तर अफ्रीका तक फैल गयी।
कई देशों के शासकों की तख्तों-ताज को इसने हिला कर रख दी। तभी से तकनीकी क्रांति की सिमाएं जमीनी क्रांति में मिल गयी। सोशल मीडिया जो अब तक भ्रांति के ज्यादा करीब थी पहली बार क्रांति का स्वरूप अख्तियार किया।
सोशल मीडिया वह आवरण है जिसे ओढ़ कर व्यक्ति अपना स्वरूप बदल सकता है। इसके जरिये व्यक्ति खुद को नये सिरे से परिभाषित कर सकता है। उसे नये आयाम तक पहुंचा सकता है।
व्यक्ति जब जन्म लेता है तो जन्म के साथ ही कई सारे पहचान तुरंत उसके साथ जुड़ जाते है। मसलन जाति, धर्म, लिंग, देश और समाज। व्यक्ति जब बड़ा होने लगता है तो उसके पसंद-नापसंद बदलने लगते है। उसे अपने वजूद की तलाश होती है। वह गहराई से चिजों को समझना चाहता है और अपने पसंद-नापसंद को खुद तराशना चाहता है।
प्राचीन काल में यह कला केवल कुछ लोगों को हासिल थी जो अपने लिए अलग दुनिया को जन्म देने में सक्षम थे। आज वस्तुस्थिति बिलकुल इतर है। आज हर किसी की यह ख्वाहिश बन गयी है कि वह अभासी दुनिया में भी मौजूद रहे। कह लें कि तकनीक ने आज आम लोगों को भी यह सुविधा मुहैया करवा दी है।
यही से क्रांति और भ्रांति का विभेद विस्तार पाता है। फर्क इतना है कि इस दुनिया में मौजूद हर शख्स की अपनी एक तकनीकी पहचान होती है जो नंबरों और स्पेशल करैक्टर से शुरू होकर उसकी अपनी मर्जी से दिशा तय करती है। एक तरह से कह लें तो इस दुनिया में प्रवेश का एक खास पासकोड होता है एक बार पासकोड डालते ही आप लाईव हो जाते है इस दुनिया के वासिंदों से हु-तू-तू करने को। आम बोल-चाल की दुनिया में व्यक्ति के हाथों में आने-जाने की क्षमता नहीं होती है। सब कुछ समय और परिस्थिति पर निर्भर करती है। जिसके उपर नियती के नियामक लागू होते है। लेकिन इस दुनिया में कब एंटर करना है और कब एग्जिट यह बात पूरी तरह प्रयोगकर्ता पर निर्भर है। यानी इस दुनिया में आप अपनी मर्जी के मालिक है।
बात थोड़ी बहकी लग रही हो पर यह बताते हुए मुझे कोई आश्चर्य नहीं है कि इस दुनिया, जिसे हम सोशल मीडिया कहते है कि अबादी कई देशों से अधिक है। मसलन अगर उदाहरणों से तय करें तो फेसबुक के सक्रिय प्रयोगकर्ता की अबादी 1.79 अरब है। भारत की आबादी की बात करें तो यह लगभग 1.25 अरब है। अगर पूरे यूरोप से इसकी तुलना की जाय तो भी यह संख्या उस पर भारी पड़ेगी। यानी कई राष्ट्रों से ज्यादा इसकी आबादी है। हर सकेंड आठ लोग फेसबुक से जुड़ते है। वहीं भारत में हर सकेंड चार बच्चें जन्म लेते है।
दूसरे संर्दभों में अगर बात की जाए तो अकेले फेसबुक की आय कई देशों के जीडीपी के बराबर या उससे भी ज्यादा है। फेसबुक द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट के मुताबिक दूसरी तिमाही में इसकी आय पिछले साल के मुकाबले इस साल दूसरी तिमाही में 186 फीसदी की बढ़त दर्ज की है। कंपनी का मुनाफा 71 करोड़ से बढ़कर 200 करोड़ डॉलर हो गयी है। अगर नेपाल की जीडीपी की बात की जाय तो 2013 के अनुसार इसकी जीडीपी 694.10 डॉलर है। वहीं इसी साल बांग्लादेश का जीडीपी 957.82 डॉलर रहा। ऐसे कई सारे राष्ट्र है जिनकी सम्मिलित आय फेसबुक जैसे सोशल साइट के आय से पीछे है।
सोशल मीडिया दुनिया के लोकतंत्रीकरण शक्तियों का विस्तार है। कई मायनों में तो यह व्यवहारिक लोकतंत्र की परिभाषा और व्यवहार की सीमाओं को भी पार करता है। यहां पहचान रखने की पूरी इजाजत है। मसलन अगर कोई लड़का लड़की बनना चाहे तो उसे कोई मना नहीं कर सकता। अमूमन ऐसा होता भी है। जिसे आप राधा समझ कर बात कर रहे हो तो हो सकता है कि वह राधेश्याम लाल हो। यानी गोपनीयता की पूरी गारंटी। यही हाल उम्र और व्यक्तित्व को लेकर भी है। जाहिर है सब में उदाहरण नहीं दिया जा सकता। इन ही सब वजहों से समाज का एक बड़ा तबका इसे निठल्लों का अड्डा भी मानता है। खास कर बीवियों के निशाने के तीर तो हमेशा सोशल मीडिया पर तनी होती है। यही कारण है कि कई शादियों और तलाक में सोशल मीडिया पंडित और मौलवी की भूमिका निभा चुका है।
चलिए अब मामला थोड़ी व्यक्तिगत से सार्वजनिक किया जाए। सोशल मीडिया के जरिये व्यक्ति एक ही जगह पर बैठे-बैठे पूरी-देश दुनिया के साथ जुड़ सकता है। न समय की बंदिशें न जगह का मोहताज। यानी स्मार्टफोन के आ जाने के बाद तो इसकी विस्तार सीमा पॉकेट से शुरू हो कर पूरे विश्व तक फैल गया है।
सोशल मीडिया पर काम भी मिलता है और काम के बाद या बीच में थोड़ा आराम भी मिलता है। एक तरह से कह लें तो यह लाईफ में रस घोलता है। इसके आने के बाद देश-समाज को देखने और समझने के नजरिये में काफी र्फक आया है।
लोगों की हैसियत तय करने में सोशल मीडिया के लाईक और शेयर अहम योगदान करने लगे है। यही नहीं आम आदमी को भी सेलिब्रिटी होने का भ्रम यहां हो सकता है। कहें तो सूक्ष्मता से लेकर गहनता के स्तर पर इसके अवतरित होने के बाद समाज में व्यापक बलाव आये है।
सोशल साईट न सिर्फ समाज बल्कि देश के राजनीतिक लोक में काफी भूचाल लाई है। चापलूसों, कार्यकर्ताओं के अलावा हर राजनीतिक दलों को राजसत्ता के लिए सोशल सिपाहियों को खड़ा करना पड़ा है। जो सोशल मीडिया पर गाली देने से लेकर प्रचारक की भी भूमिका बखूबी अदा करने में सक्षम हैं। यही वजह है कि सोशल मीडिया आम को भी खास बना दिया है।
कई सारे पत्रकारों और टिप्पणीकारों के सोसल साईट फ्लोवर हजारों में है। उनकी पोस्ट को हजारों में लाईक और शेयर मिलती है। यही से वे सत्ता और समाज के बुराईयों को निशाने पर लेते है।
एक तरह से देखे तो सोशल साईट पब्लिकेशन हाउस की भी भूमिका अदा करती है। जहां छपने के लिए किसी की इजाजद और तारीख की जरूरत नहीं होती। साथ ही सेंसरशिप के कैंची से भी आप आजाद होते है। अपनी पोस्ट तुरंत प्रकाशित(पोस्ट) करिए और दनादन कमेंट की फील्डिंग करिये। कहने के मायने यह है कि प्रतिपुष्टि (कमेंट) का इतना त्वरित और समग्र माध्यम कोई नहीं है।
सोशल साईट से दूरी बनाना खुद को यर्थाथ से दूर रखना है इसलिए सोसल साईट से जुड़ना आम बात है। जबकि वर्तमान समय में सोसल साईट से दूर रहना खास बात है।
कम पैसे और संसाधन के बिना ही सोसल साईट से आसानपूर्वक पूरे विश्व तक पहूंचा जा सकता है। अपनी बात रखने के लिए इससे आसान और सुगम मंच शायद ही कोई और हो।
कई लोग इसका प्रयोग मेल इत्यादि के लिए भी करते है। कई इसके द्वारा साम्रगी का आदान प्रदान (डॉक्यूमेंट,फोटो,म्यूजिक और मैसेज) भी करते है।
सोशल मीडिया के द्वारा कोई नागरिक देश के कोने से सत्ता के शीर्ष तक संचार कर सकता है। मसलन अपनी बात प्रधानमंत्री और मंत्रियों तक आसानी से पहुंचा सकता है। कई ऐसे समाचार हमारे पास पहुंचते है जिसमें इसका प्रयोग कर लोग अपनी बात उपर तक पहुंचाते है।
कहते है कि संचार में अफवाह की गती सबसे तेज होती है। यही वजह है कि सोशल मीडिया अफवाहों के साथ ही पुख्ता समाचार को भेजने और पाने का सबसे तेज माध्यम है।
जिस तरह दुनिया एक रंगमंच की तरह है उसी तरह सोशल मीडिया भी एक तरह से रंगमंच की तरह है जिसका प्रयोग लोग अपनी बेहतरीन प्रस्तुती के लिए करते है। कई लोग केवल चित्रों के माध्यम से अपनी बात यहां करते है। तो कई लोग शब्दों को जोड़ कर दुनियां के ताने-बाने को यहां प्रस्तुत करते है।
सोशल साईट पर हुए कई रिसर्च कई तरह के दावे करते है। बीबीसी पर छपे एक रिसर्च की माने तो फेसबुक से दूरी खुशियों को बढ़ाने में मददगार है। इस रिसर्च में पाया गया है कि जो लोग सोशल नेटवर्क साइट से जुड़े हुए थे, जीवन के प्रति उनका संतोष का स्तर 1 से 10 के पैमाने पर 7.75 था। जिन्होंने फेसबुक छोड़ दिया था, उनके मन में जीवन से संतोष का स्तर 8.12 था। यानी वे अधिक संतुष्ट थे।
प्रभात खबर दिनांक 27.11.16 के पटना संस्करण में पेज नंबर पांच पर छपे खबर के अनुसार एक लड़की के साथ किसी ने ऐसी हरकत की है कि वह शर्मसार है और मानसिक रूप से पीड़ित हो चुकी है। यहां तक की उसने घर से निकलना तक छोड़ दिया है। किसी ने उसकी फोटो को उसके फेसबुक प्रोफाइल से चुरा कर र्पान वेबसाइट व अन्य जगहों पर डाल दिया है।
इसी अखबार के कॉलम के अनुसार फेसबुक पर एक छात्रा के साथ किसी ने दोस्ती कर कर के धोखा दे दिया जिसकी वजह से उसने सुसाईट कर ली। फेसबुक से ब्लेकमेलिंग कि घटना की खबरें भी खुब आती रहती है।
आईएसआईएस जैसी कई संस्थाएं इसका प्रयोग गलत कार्यों के लिए करते है। अपनी नापक नीतियों की दुष्प्रचार के लिए इसका प्रयोग करते है। कई भारतीय युवक इसके द्वारा इस संस्था के साथ जुड़ कर समाज की मुख्य धारा से अलग हुए। इसका परिणाम भी उनको झेलना पड़ा।
समुद्र मंथन में कुछ अच्छी और बुरी बातें दानों निकल कर सामने आती हैं। फिर भी सोशल मीडिया का बड़ा योगदान समाज-देश-व्यक्तित्व के निर्माण में ही है। इसे इसी रूप में ही स्वीकारा जाना चाहिए।
शब्द-दृश्य-छवि और भावनाओं का ताना-बाना है सोशल मीडिया। भावनाओं के लहरों पर हिचकोले खाने का नाम है सोशल मीडिया। रियल दुनिया का वर्चुअल दुनिया में विलय होने का आधार है सोशल मीडिया। कुछ पूरा होने और कुछ अधुरा होने का अहसास करता है सोशल मीडिया। कईयों के लिए पूरा दुनिया है सोशल मीडिया। कुछ के लिए क्रीड़ास्थल तो कुछ के लिए रणक्षेत्र है सोशल मीडिया। कुछ के लिए मुस्कुराहट तो कुछ के लिए डिप्रेशन है सोशल मीडिया।
सबसे बड़ा सवाल क्रांति या भ्रांति है सोशल मीडिया?
अभी तक लोगों ने इसका प्रयोग हंसने-हंसाने और एक-दूसरे को प्रभावित करने के लिए ही किया था। एक तरह से कह लें तो सोशलाईजेशन तक ही इसके दायरें सीमित थे। क्रांति भी तकनीकि सीमाओं तक ही अपनी विस्तार पाई थी। अचानक एक दिन पता चला कि विश्व के कठोरतम शासकों के इलाके अरब में इसने वह बदलाव किया जो इसके इतिहास को ही बदल कर रख दिया। 25 जनवरी 2011 को मिस्र के तहरीर चौराहे पर इकठ्ठा हजारों के भीड़ ने आगे चल कर 30 साल से सत्ता पर काबिज हुस्नी मुबारक को पदच्युत कर दिया। लगभग एक साल बाद ट्यूनीशिया में भी वही हाल हुआ। इसके बाद बदलाव की बयार पूरे मध्य पूर्व और उत्तर अफ्रीका तक फैल गयी।
कई देशों के शासकों की तख्तों-ताज को इसने हिला कर रख दी। तभी से तकनीकी क्रांति की सिमाएं जमीनी क्रांति में मिल गयी। सोशल मीडिया जो अब तक भ्रांति के ज्यादा करीब थी पहली बार क्रांति का स्वरूप अख्तियार किया।
सोशल मीडिया वह आवरण है जिसे ओढ़ कर व्यक्ति अपना स्वरूप बदल सकता है। इसके जरिये व्यक्ति खुद को नये सिरे से परिभाषित कर सकता है। उसे नये आयाम तक पहुंचा सकता है।
व्यक्ति जब जन्म लेता है तो जन्म के साथ ही कई सारे पहचान तुरंत उसके साथ जुड़ जाते है। मसलन जाति, धर्म, लिंग, देश और समाज। व्यक्ति जब बड़ा होने लगता है तो उसके पसंद-नापसंद बदलने लगते है। उसे अपने वजूद की तलाश होती है। वह गहराई से चिजों को समझना चाहता है और अपने पसंद-नापसंद को खुद तराशना चाहता है।
प्राचीन काल में यह कला केवल कुछ लोगों को हासिल थी जो अपने लिए अलग दुनिया को जन्म देने में सक्षम थे। आज वस्तुस्थिति बिलकुल इतर है। आज हर किसी की यह ख्वाहिश बन गयी है कि वह अभासी दुनिया में भी मौजूद रहे। कह लें कि तकनीक ने आज आम लोगों को भी यह सुविधा मुहैया करवा दी है।
यही से क्रांति और भ्रांति का विभेद विस्तार पाता है। फर्क इतना है कि इस दुनिया में मौजूद हर शख्स की अपनी एक तकनीकी पहचान होती है जो नंबरों और स्पेशल करैक्टर से शुरू होकर उसकी अपनी मर्जी से दिशा तय करती है। एक तरह से कह लें तो इस दुनिया में प्रवेश का एक खास पासकोड होता है एक बार पासकोड डालते ही आप लाईव हो जाते है इस दुनिया के वासिंदों से हु-तू-तू करने को। आम बोल-चाल की दुनिया में व्यक्ति के हाथों में आने-जाने की क्षमता नहीं होती है। सब कुछ समय और परिस्थिति पर निर्भर करती है। जिसके उपर नियती के नियामक लागू होते है। लेकिन इस दुनिया में कब एंटर करना है और कब एग्जिट यह बात पूरी तरह प्रयोगकर्ता पर निर्भर है। यानी इस दुनिया में आप अपनी मर्जी के मालिक है।
बात थोड़ी बहकी लग रही हो पर यह बताते हुए मुझे कोई आश्चर्य नहीं है कि इस दुनिया, जिसे हम सोशल मीडिया कहते है कि अबादी कई देशों से अधिक है। मसलन अगर उदाहरणों से तय करें तो फेसबुक के सक्रिय प्रयोगकर्ता की अबादी 1.79 अरब है। भारत की आबादी की बात करें तो यह लगभग 1.25 अरब है। अगर पूरे यूरोप से इसकी तुलना की जाय तो भी यह संख्या उस पर भारी पड़ेगी। यानी कई राष्ट्रों से ज्यादा इसकी आबादी है। हर सकेंड आठ लोग फेसबुक से जुड़ते है। वहीं भारत में हर सकेंड चार बच्चें जन्म लेते है।
दूसरे संर्दभों में अगर बात की जाए तो अकेले फेसबुक की आय कई देशों के जीडीपी के बराबर या उससे भी ज्यादा है। फेसबुक द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट के मुताबिक दूसरी तिमाही में इसकी आय पिछले साल के मुकाबले इस साल दूसरी तिमाही में 186 फीसदी की बढ़त दर्ज की है। कंपनी का मुनाफा 71 करोड़ से बढ़कर 200 करोड़ डॉलर हो गयी है। अगर नेपाल की जीडीपी की बात की जाय तो 2013 के अनुसार इसकी जीडीपी 694.10 डॉलर है। वहीं इसी साल बांग्लादेश का जीडीपी 957.82 डॉलर रहा। ऐसे कई सारे राष्ट्र है जिनकी सम्मिलित आय फेसबुक जैसे सोशल साइट के आय से पीछे है।
सोशल मीडिया दुनिया के लोकतंत्रीकरण शक्तियों का विस्तार है। कई मायनों में तो यह व्यवहारिक लोकतंत्र की परिभाषा और व्यवहार की सीमाओं को भी पार करता है। यहां पहचान रखने की पूरी इजाजत है। मसलन अगर कोई लड़का लड़की बनना चाहे तो उसे कोई मना नहीं कर सकता। अमूमन ऐसा होता भी है। जिसे आप राधा समझ कर बात कर रहे हो तो हो सकता है कि वह राधेश्याम लाल हो। यानी गोपनीयता की पूरी गारंटी। यही हाल उम्र और व्यक्तित्व को लेकर भी है। जाहिर है सब में उदाहरण नहीं दिया जा सकता। इन ही सब वजहों से समाज का एक बड़ा तबका इसे निठल्लों का अड्डा भी मानता है। खास कर बीवियों के निशाने के तीर तो हमेशा सोशल मीडिया पर तनी होती है। यही कारण है कि कई शादियों और तलाक में सोशल मीडिया पंडित और मौलवी की भूमिका निभा चुका है।
चलिए अब मामला थोड़ी व्यक्तिगत से सार्वजनिक किया जाए। सोशल मीडिया के जरिये व्यक्ति एक ही जगह पर बैठे-बैठे पूरी-देश दुनिया के साथ जुड़ सकता है। न समय की बंदिशें न जगह का मोहताज। यानी स्मार्टफोन के आ जाने के बाद तो इसकी विस्तार सीमा पॉकेट से शुरू हो कर पूरे विश्व तक फैल गया है।
सोशल मीडिया पर काम भी मिलता है और काम के बाद या बीच में थोड़ा आराम भी मिलता है। एक तरह से कह लें तो यह लाईफ में रस घोलता है। इसके आने के बाद देश-समाज को देखने और समझने के नजरिये में काफी र्फक आया है।
लोगों की हैसियत तय करने में सोशल मीडिया के लाईक और शेयर अहम योगदान करने लगे है। यही नहीं आम आदमी को भी सेलिब्रिटी होने का भ्रम यहां हो सकता है। कहें तो सूक्ष्मता से लेकर गहनता के स्तर पर इसके अवतरित होने के बाद समाज में व्यापक बलाव आये है।
सोशल साईट न सिर्फ समाज बल्कि देश के राजनीतिक लोक में काफी भूचाल लाई है। चापलूसों, कार्यकर्ताओं के अलावा हर राजनीतिक दलों को राजसत्ता के लिए सोशल सिपाहियों को खड़ा करना पड़ा है। जो सोशल मीडिया पर गाली देने से लेकर प्रचारक की भी भूमिका बखूबी अदा करने में सक्षम हैं। यही वजह है कि सोशल मीडिया आम को भी खास बना दिया है।
कई सारे पत्रकारों और टिप्पणीकारों के सोसल साईट फ्लोवर हजारों में है। उनकी पोस्ट को हजारों में लाईक और शेयर मिलती है। यही से वे सत्ता और समाज के बुराईयों को निशाने पर लेते है।
एक तरह से देखे तो सोशल साईट पब्लिकेशन हाउस की भी भूमिका अदा करती है। जहां छपने के लिए किसी की इजाजद और तारीख की जरूरत नहीं होती। साथ ही सेंसरशिप के कैंची से भी आप आजाद होते है। अपनी पोस्ट तुरंत प्रकाशित(पोस्ट) करिए और दनादन कमेंट की फील्डिंग करिये। कहने के मायने यह है कि प्रतिपुष्टि (कमेंट) का इतना त्वरित और समग्र माध्यम कोई नहीं है।
सोशल साईट से दूरी बनाना खुद को यर्थाथ से दूर रखना है इसलिए सोसल साईट से जुड़ना आम बात है। जबकि वर्तमान समय में सोसल साईट से दूर रहना खास बात है।
कम पैसे और संसाधन के बिना ही सोसल साईट से आसानपूर्वक पूरे विश्व तक पहूंचा जा सकता है। अपनी बात रखने के लिए इससे आसान और सुगम मंच शायद ही कोई और हो।
कई लोग इसका प्रयोग मेल इत्यादि के लिए भी करते है। कई इसके द्वारा साम्रगी का आदान प्रदान (डॉक्यूमेंट,फोटो,म्यूजिक और मैसेज) भी करते है।
सोशल मीडिया के द्वारा कोई नागरिक देश के कोने से सत्ता के शीर्ष तक संचार कर सकता है। मसलन अपनी बात प्रधानमंत्री और मंत्रियों तक आसानी से पहुंचा सकता है। कई ऐसे समाचार हमारे पास पहुंचते है जिसमें इसका प्रयोग कर लोग अपनी बात उपर तक पहुंचाते है।
कहते है कि संचार में अफवाह की गती सबसे तेज होती है। यही वजह है कि सोशल मीडिया अफवाहों के साथ ही पुख्ता समाचार को भेजने और पाने का सबसे तेज माध्यम है।
जिस तरह दुनिया एक रंगमंच की तरह है उसी तरह सोशल मीडिया भी एक तरह से रंगमंच की तरह है जिसका प्रयोग लोग अपनी बेहतरीन प्रस्तुती के लिए करते है। कई लोग केवल चित्रों के माध्यम से अपनी बात यहां करते है। तो कई लोग शब्दों को जोड़ कर दुनियां के ताने-बाने को यहां प्रस्तुत करते है।
सोशल साईट पर हुए कई रिसर्च कई तरह के दावे करते है। बीबीसी पर छपे एक रिसर्च की माने तो फेसबुक से दूरी खुशियों को बढ़ाने में मददगार है। इस रिसर्च में पाया गया है कि जो लोग सोशल नेटवर्क साइट से जुड़े हुए थे, जीवन के प्रति उनका संतोष का स्तर 1 से 10 के पैमाने पर 7.75 था। जिन्होंने फेसबुक छोड़ दिया था, उनके मन में जीवन से संतोष का स्तर 8.12 था। यानी वे अधिक संतुष्ट थे।
प्रभात खबर दिनांक 27.11.16 के पटना संस्करण में पेज नंबर पांच पर छपे खबर के अनुसार एक लड़की के साथ किसी ने ऐसी हरकत की है कि वह शर्मसार है और मानसिक रूप से पीड़ित हो चुकी है। यहां तक की उसने घर से निकलना तक छोड़ दिया है। किसी ने उसकी फोटो को उसके फेसबुक प्रोफाइल से चुरा कर र्पान वेबसाइट व अन्य जगहों पर डाल दिया है।
इसी अखबार के कॉलम के अनुसार फेसबुक पर एक छात्रा के साथ किसी ने दोस्ती कर कर के धोखा दे दिया जिसकी वजह से उसने सुसाईट कर ली। फेसबुक से ब्लेकमेलिंग कि घटना की खबरें भी खुब आती रहती है।
आईएसआईएस जैसी कई संस्थाएं इसका प्रयोग गलत कार्यों के लिए करते है। अपनी नापक नीतियों की दुष्प्रचार के लिए इसका प्रयोग करते है। कई भारतीय युवक इसके द्वारा इस संस्था के साथ जुड़ कर समाज की मुख्य धारा से अलग हुए। इसका परिणाम भी उनको झेलना पड़ा।
समुद्र मंथन में कुछ अच्छी और बुरी बातें दानों निकल कर सामने आती हैं। फिर भी सोशल मीडिया का बड़ा योगदान समाज-देश-व्यक्तित्व के निर्माण में ही है। इसे इसी रूप में ही स्वीकारा जाना चाहिए।