मैं भीड़ हूं
महानगर का हिस्सा
समय और परिस्थिति
के अनुसार मेरा आकार-प्रकार
बदलता रहता है ।।
@अजय कुमार सिंह
महानगर का हिस्सा
समय और परिस्थिति
के अनुसार मेरा आकार-प्रकार
बदलता रहता है ।।
मनुष्य तो बस इकाई है
सच्चाई भीड़ है
न मेरी कोई भाषा
न कोई संस्कृति।।
सच्चाई भीड़ है
न मेरी कोई भाषा
न कोई संस्कृति।।
हमेशा नायक की
तलाश में रहता हूं
नायक जो समय का मसीहा
जन-आकांक्षाओं की उपज हो।।
तलाश में रहता हूं
नायक जो समय का मसीहा
जन-आकांक्षाओं की उपज हो।।
लोकतंत्र मेरा ही विस्तार है
सच कहूं तो हर तंत्र का
मैं ही निर्माता और निर्देशक हूं
क्योंकि मैं भीड़ हूं।।
सच कहूं तो हर तंत्र का
मैं ही निर्माता और निर्देशक हूं
क्योंकि मैं भीड़ हूं।।
@अजय कुमार सिंह