दहक रही हैं आँखें
तरस रहे हैं हम
पता नहीं पटना से
वर्धा के बीच क्या
छोड़ आये हैं हम।।
वर्धा के बीच क्या
छोड़ आये हैं हम।।
इतनी रात गई
नींद नहीं आती हैं
शरीर थका मन थका
अलसाये हुए और
ऊबे-ऊबे से हैं हम।।
नींद नहीं आती हैं
शरीर थका मन थका
अलसाये हुए और
ऊबे-ऊबे से हैं हम।।
रात गहरी जाती है
सुकून कहाँ आती हैं
सुबह की आहट से
मन घबराता है सोने को
तरस रहे हैं हम।।।
@अजय कुमार सिंह
सुकून कहाँ आती हैं
सुबह की आहट से
मन घबराता है सोने को
तरस रहे हैं हम।।।
@अजय कुमार सिंह