राह का पत्थर नहीं
मेरी अनदेखी करो
मेरी सच्चाई जानोगे
शीश झुकाओगे
जल डालोगे
मन्नते हजार करोगे।।
विश्वास न हो तो
पहुंचो हवेली पर
मिल जाएंगे हाथ जोड़े
लाइन लगाकर लोग खड़े।।
मेरी जड़ तलाशते हो
आरंभ भी मैं
अंत भी मैं
जहां तक नजरें जाएगी
वहां तक दिखूंगा
सिर्फ मैं ही मैं।।
फिर क्या फायदा
मेरे इतिहास जानने की क्योंकि
भूत भी मैं
भविष्य भी मैं
वर्तमान की हर कहानी
कल्पनाओं का आधार हूं मैं।।
मुझसे मिलना चाहते हो
सवाल है क्या मुझ तक पहुंच पाओगे
जितना सुलभ हूं
उतना ही दुर्लभ हूं मैं
जितना सरल हूं
उतना ही जटिल हूं मैं।।
विश्वास न हो तो
आस-पास मेरा
विस्तार देख लो
तिनका भी मैं
महल भी मैं।।
शिकायत है मेरी
गंभीरता से नहीं लेते हो तुम दिल से
जबकि आकार भी मैं
शून्य भी मैं
ब्रह्मांड के तमाम रहस्य का
आधार भी मैं।।
@अजय कुमार सिंह
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महायोगी